(यहाँ जो लिखा गया है वह श्री वीरूमल, पीसीएस (सेवानिवृत्त) के मेघ राजनीति के बारे में विचार हैं. श्री वीरूमल आज भी सरकारी कार्यालयों में आरक्षण नीति के विशेषज्ञ माने जाते हैं और इसी क्षेत्र में सक्रिय हैं. ये मेघ समुदाय से हैं लेकिन सरकारी नौकरी के समय से ही इनका दायरा चमार समुदाय में रहा है. उनके ये विचार scribbling के रूप में मिले हैं और उन्हें उसी रूप में लिखा है. आगे उनके विचारों को विस्तार दिया जाएगा. उनकी भाषा का हिंदीकरण किया गया है.)
मेघों, कबीरपंथियों की अपनी कोई पॉवरफुल लॉबी नहीं है, चाहे वे किसी भी धर्म से क्यों न हों. इसका एक ही हल समझ में आता है कि अपने ऑरिजिन को आधार बनाया जाए कि हमारा ऑरिजिन तो एक है. अपने निजी विकास के लिए हम इधर-उधर (धर्मों में) गए हैं. सिखों ने किया, आर्यसमाज ने भी ऐसा किया. उन्होंने अपनी गिनती बढ़ाने के लिए किया. ग़रीब का पेट न भूखा अच्छा न भरा अच्छा. किसी को मानें पर अपने ऑरिजिन को देख कर एक संगठन का हो जाना चाहिए.
हम स्वयं स्वतंत्र रूप से आगे नहीं आ सकते. मायावती ने अन्य समुदायों को साथ लिया है. बीजेपी के साथ मिल कर दो बार कोलिशन सरकार बनाई है. पैसे की कमी थी लेकिन स्वयं सरकार बनाई. जैसे भी आया हो अब उसके पास पैसा भी है. अन्य समुदायों विशेष कर दलितों के साथ मिल कर कार्य करना होगा. कमज़ोर को उठने के लिए किसी का सहारा लेना पड़ता है. इसी प्रकार अपने हित को साधना होगा.
यदि कोई सरकार हड्डी देती है तो आगे बढ़ कर माँस भी पकड़ो. चमार समुदाय से सहयोग लेना होगा और उन्हें सहयोग देना भी होगा. वे अब संगठित हैं.
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