मेघ पोलिटिक्स की ये website मेघ भगत समाज मे राजनीतिक चेतना पैदा करने की एक कोशिश है ! इस से हम आपने मेघ समाज को बताना चाह्ते हैन की हमारा समाज आज राजनीतिक तोर पर भी काफी उचाइयान छु रह है !हम सभ को इस देश मे राजनीतिक शक्ति प्राप्त कर्ने की कोशिश करनी चाहिए ता की हमारे समाज की आर्थिक हालत मे सुधार आए! पंजाब में विधान सभा के चुनाव का बिगुल बज चूका है ! इस बार भी मेघ समाज को सभी राजनितिक पार्टिओं ने पार्टी टिकेट्स नहीं दी ! जालंधर वेस्ट विधान सभा क्षेत्र में सिवाए भारतीय जनता पार्टी व बहुजन समाज पार्टी के पुरे पंजाब में किसी और पार्टी ने टिकेट नहीं दिया ! अब सवाल ये उठता है कि मेघों को क्या करना चाहिए ? इस का सीधा सा जवाब ये है कि मेघ समाज को पंजाब में में आपनी शक्ति दिखने के लिए सभी आरक्षित सीटों पर खुद इलेक्शन लर्न चाहिए !महारथी वो होता है जो युद्ध में आपने हित के लिए लड़ता है ! मेघ समाज को आपने अस्तित्व के लिए इस बार ज़रूर कुछ करना चाहिए वर्ना आने वाली मेघ नस्लों को हम क्या जवाब देंगे ! भगत महासभा कि और से पूरा जोर लगाया जा रहा है कि मेघ समाज पंजाब में अजादाना तोर पर सभी रेसेर्वे हलकों पर आपने उमीदवार उतारे !

Political notes of 80 years old Virumal - 80 वर्षीय वीरूमल जी के राजनीतिक नोट्स

Wednesday, December 21, 2011


(यहाँ जो लिखा गया है वह श्री वीरूमल, पीसीएस (सेवानिवृत्त) के मेघ राजनीति के बारे में विचार हैं. श्री वीरूमल आज भी सरकारी कार्यालयों में आरक्षण नीति के विशेषज्ञ माने जाते हैं और इसी क्षेत्र में सक्रिय हैं. ये मेघ समुदाय से हैं लेकिन सरकारी नौकरी के समय से ही इनका दायरा चमार समुदाय में रहा है. उनके ये विचार scribbling के रूप में मिले हैं और उन्हें उसी रूप में लिखा है. आगे उनके विचारों को विस्तार दिया जाएगा. उनकी भाषा का हिंदीकरण किया गया है.)

मेघों, कबीरपंथियों की अपनी कोई पॉवरफुल लॉबी नहीं है, चाहे वे किसी भी धर्म से क्यों न हों. इसका एक ही हल समझ में आता है कि अपने ऑरिजिन को आधार बनाया जाए कि हमारा ऑरिजिन तो एक है. अपने निजी विकास के लिए हम इधर-उधर (धर्मों में) गए हैं. सिखों ने किया, आर्यसमाज ने भी ऐसा किया. उन्होंने अपनी गिनती बढ़ाने के लिए किया. ग़रीब का पेट न भूखा अच्छा न भरा अच्छा. किसी को मानें पर अपने ऑरिजिन को देख कर एक संगठन का हो जाना चाहिए.

हम स्वयं स्वतंत्र रूप से आगे नहीं आ सकते. मायावती ने अन्य समुदायों को साथ लिया है. बीजेपी के साथ मिल कर दो बार कोलिशन सरकार बनाई है. पैसे की कमी थी लेकिन स्वयं सरकार बनाई. जैसे भी आया हो अब उसके पास पैसा भी है. अन्य समुदायों विशेष कर दलितों के साथ मिल कर कार्य करना होगा. कमज़ोर को उठने के लिए किसी का सहारा लेना पड़ता है. इसी प्रकार अपने हित को साधना होगा.

यदि कोई सरकार हड्डी देती है तो आगे बढ़ कर माँस भी पकड़ो. चमार समुदाय से सहयोग लेना होगा और उन्हें सहयोग देना भी होगा. वे अब संगठित हैं.

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