मेघ पोलिटिक्स की ये website मेघ भगत समाज मे राजनीतिक चेतना पैदा करने की एक कोशिश है ! इस से हम आपने मेघ समाज को बताना चाह्ते हैन की हमारा समाज आज राजनीतिक तोर पर भी काफी उचाइयान छु रह है !हम सभ को इस देश मे राजनीतिक शक्ति प्राप्त कर्ने की कोशिश करनी चाहिए ता की हमारे समाज की आर्थिक हालत मे सुधार आए! पंजाब में विधान सभा के चुनाव का बिगुल बज चूका है ! इस बार भी मेघ समाज को सभी राजनितिक पार्टिओं ने पार्टी टिकेट्स नहीं दी ! जालंधर वेस्ट विधान सभा क्षेत्र में सिवाए भारतीय जनता पार्टी व बहुजन समाज पार्टी के पुरे पंजाब में किसी और पार्टी ने टिकेट नहीं दिया ! अब सवाल ये उठता है कि मेघों को क्या करना चाहिए ? इस का सीधा सा जवाब ये है कि मेघ समाज को पंजाब में में आपनी शक्ति दिखने के लिए सभी आरक्षित सीटों पर खुद इलेक्शन लर्न चाहिए !महारथी वो होता है जो युद्ध में आपने हित के लिए लड़ता है ! मेघ समाज को आपने अस्तित्व के लिए इस बार ज़रूर कुछ करना चाहिए वर्ना आने वाली मेघ नस्लों को हम क्या जवाब देंगे ! भगत महासभा कि और से पूरा जोर लगाया जा रहा है कि मेघ समाज पंजाब में अजादाना तोर पर सभी रेसेर्वे हलकों पर आपने उमीदवार उतारे !

Political ambitions of Meghs in forthcoming assembly elections-2012 - मेघों की राजनीतिक महत्वाकांक्षा

Wednesday, December 14, 2011


पंजाब में विधान सभा के चुनाव फरवरी 2012 में होने जा रहे हैं. सुना है कि इस बार कम-से-कम 10 मेघ भगत किसी पार्टी की ओर से या स्वतंत्र उम्मीदवार के तौर पर चुनाव में खड़े हो सकते हैं. देखना है कि हमारी तैयारी कितनी है.

शुद्धीकरण की प्रक्रिया से गुजरने के बाद सन् 1910 तक मेघों में जैसे ही अत्मविश्वास जगा तुरत ही उनमें राजनीतिक महत्वाकांक्षा जागृत हो गई.  इसे लेकर अन्य समुदाय चौकन्ने हो गए. अपने हाथ में आई सत्ता को कोई किसी दूसरे को थाली में नहीं परोसता कि 'आइये हुजूर मंत्रालय हाज़िर है'. तब से लेकर आज तक  वह महत्वाकांक्षा ज्यों की त्यों है लेकिन समुदाय में राजनीतिक एकता का कहीं अता-पता नहीं. 
भारत विभाजन के बाद मेघ भगतों का  कांग्रेस की झोली में गिरना स्वाभाविक था. अन्य कोई पार्टी थी ही नहीं. फिर आपातकाल के बाद जनता पार्टी का बोलबाला हुआ. जालन्धर से श्री रोशन लाल को जनता पार्टी का टिकट मिला. पूरे देश में जनता पार्टी को अभूतपूर्व जीत मिली. लेकिन भार्गव नगर से जनता पार्टी हार गई. देसराज की 75 वर्षीय माँ ने हलधर पर मोहर लगाईविजय के 80 वर्षीय पिता ने हलधर पर ठप्पा लगाया. ये दोनों छोटे दूकानदार थे. लेकिन इस चुनाव क्षेत्र से दर्शन सिंह के.पी. (के.पी.) चुनाव जीत गया.राजनीतिक शिक्षा के अभाव में मेघ भगतों के वोट बँट गए.
फिर भगत चूनी लाल (वर्तमान में पंजाब विधान सभा के डिप्टी स्पीकर) यहाँ से दो बार बीजेपी के टिकट से जीते. लेकिन समुदाय के लोगों को हमेशा शिकायत रही कि इन्होंने बिरादरी के लिए उतना कार्य नहीं किया जितना ये कर सकते थे. कहते हैं कि नेता आसानी सेसमुदाय से ऊपर उठ जाते हैं और फिर 'अपनों' की ओर मुड़ कर नहीं देखते. यहाँ एक विशेष टिप्पणी आवश्यक है कि यदि कोई नेता विधान सभा का सदस्य बन जाता है तो वह किसी समुदाय/बिरादरी विशेष का नहीं रह जाता. वह सारे चुनाव क्षेत्र का होता है. दूसरी वस्तुस्थिति यह है कि हमारे नेताओं की बात संबंधित पार्टी की हाई कमान अधिक सुनती नहीं है. मेघ भगत ज़रा सोचें कि वे कितनी बार अपने नेताओं के साथ सड़कों पर उतरे हैं, कितनी बार उन्होंने अपनी माँगों की लड़ाई लड़ते हुए हाईवे को जाम किया है या अपने नेता के पक्ष में शक्ति प्रदर्शन किया है. इसके उत्तर से ही उनके नेता और उसके समर्थकों की शक्ति का अनुमान लगाया जाएगा. 

सी.पी.आई. के टिकट से जीते एक मेघ भगत चौधरी नत्थूराम मलौट से पंजाब विधान सभा में दो बार चुन कर आए. इन्हीं के पिता श्री दाना राम तीन बार सीपीआई की टिकट से जीत कर विधानसभा में आए हैं. पता नहीं उनके बारे में कितने लोग जानते हैं.

सत्ता में भागीदारी का सपना 1910 में हमारे पुरखों ने देखा था. वे मज़बूत थे. इस बीच क्या हमें अधिक मज़बूत नहीं होना चाहिए था? सोचें. 'एकता ही शक्ति है' की समझ जितनी जल्दी आ जाए उतना अच्छा. एकता की कमी और राजनीतिक पिछड़ेपन का हमेशा का साथ है.

राजनीतिक पार्टी कोई भी हो, इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता. सब का चेहरा एक जैसा होता है. महत्वपूर्ण है कि मेघ समाज आपस में जुड़ने की आदत डाले. आपस में जुड़ गए तो स्वतंत्र उम्मीदवार को भी जिता सकते हैं. यही बात है जो बड़ी राजनीतिक पार्टियाँ नहीं चाहतीं. 


मेघो कर लो एका, भगतो कर लो एका.


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