Baba Saheb Dr.B.R.Ambedkar
Kailash Meghwal
Arjun Meghwal
Bharat Ram Meghwal
Yash Paul Mandley
Ram Lal Meghwal
Panachand Meghwal
Vishwanath Meghwal
SURINDER KUMAR SHINDA BHAGAT EX. COUNCILLOR
Mrs Kamsa Meghwal
Padma Ram Meghwal
Aadram Meghwal
Chander Kanta Meghwal
Bhagat Chuni Lal
Manju Meghwal
Nathu Ram Megh
Kimti Bhagat
Suman Bhagat
Moola Ram Bhagat
Bali Bhagat
Dr.Chaman Lal Bhagat
Prof.Gharu Ram Bhagat
Krishan Chander Bhagat
1THE CONSTITUTION (JAMMU AND KASHMIR) SCHEDULED CASTES ORDER, 1956
Wednesday, December 28, 2011C.O. 52
In exercise of the powers conferred by clause (1) of article 341 of the Constitution of India, the President, after consultation with the Sadar-i-Riyasat of Jammu and Kashmir, is pleased to make the following Order, namely:-
- This Order may be called the Constitution (Jammu and Kashmir) Scheduled Castes Order, 1956.
- The castes specified in the Schedule to this Order shall, for the purposes of the Constitution, be deemed to be Scheduled Castes in relation to the State of Jammu and Kashmir:
Provided that no person who professes a religion different from the Hindu 2[, the Sikh or the Buddhist] religion.
THE SCHEDULE
1. Barwala
2. Basith
3. Batwal
3[4. Chamar or Ramdasia, Chamar-Ravidas, Chamar-Rohidas]
3[5. Chura, Bhangi, Balmiki, Mehtar]
6. Dhyar
3[7. Doom or Mahasha, Dumna]
2. Basith
3. Batwal
3[4. Chamar or Ramdasia, Chamar-Ravidas, Chamar-Rohidas]
3[5. Chura, Bhangi, Balmiki, Mehtar]
6. Dhyar
3[7. Doom or Mahasha, Dumna]
8. Gardi
9. Jolaha
10. Megh or Kabirpanthi
11. Ratal
12. Saryara
13. Watal.
9. Jolaha
10. Megh or Kabirpanthi
11. Ratal
12. Saryara
13. Watal.
Manju devi Meghwal,State Minister,Rajasthan
Rajasthan Legislative Assembly
Members of 13th House
Members of 13th House
MY BIO-DATA
Mrs Manju Devi [ Indian National Congress ] Jayal (SC), District - Nagaur | ||
Father's Name : | Omprakash | |
Date of Birth : | 20/4/1977 | |
Place of Birth : | Puskar, Ajmer | |
Marriage Date : | 03/06/1996 | |
Spouse's Name : | Sh. Om Prakesh | |
Children : | 2 Son(s) | |
Academic Qualifications : | B.A. (IInd Year) | |
Occupation : | Business | |
Membership of the House(s) : | 13 | |
Membership of Committee : | Member, Committee on Welfare of Women & Children (2010-2011) Member, Committee on Welfare of Women & Children (2009-2010) Member, Committee on Welfare of Schedule Tribe (2011-2012) Member, Committee on Welfare of Women & Children (2011-2012) | |
Permanent Address : | Opp. Indian Public School,, Bypass Road, Jayal, Nagaur Tel. No. : 01583-272327 | |
Present Address : | 3/1, Vidhayak Nagar (West), Jaipur., Tel. No. : 94137-10525 | |
Mobile No. : | 94133-68125 |
Rajasthan Legislative Assembly
Members of 13th House
Members of 13th House
MY BIO-DATA
Mrs Chandrakanta Meghwal [ Bharatiya Janata Party ] Ramganj Mandi (SC), District - Kota | ||
Father's Name : | Narendar Pal Meghwal | |
Date of Birth : | 25/5/1974 | |
Place of Birth : | Lakheri, Keshoraipatan | |
Marriage Date : | 21/04/1995 | |
Spouse's Name : | Sh. Narendrapal Verma | |
Children : | 1 Son(s) & 1 Daughter(s) | |
Academic Qualifications : | M.A. (Sociology & Hindi) | |
Occupation : | Petrol Pump | |
Membership of the House(s) : | 13 | |
Membership of Committee : | Member, Committee on Priviledges (2010-2011) Member, Committee on Priviledges (2009-2010) Member, Committee on Priviledges (2011-2012) | |
Permanent Address : | 3-P-55, Vighyan Nagar, Kota., Tel. No. : 0744-2425656 | |
Present Address : | 8/17, Vidhayak Nagar (East), Jaipur., Tel. No. : 94133-50111 | |
Mobile No. : | 94142-86045 |
मेघवंश समाज के शूरवीरो जागो
Tuesday, December 27, 2011अब सवाल ये उठता है की अगर कोई भी पार्टी मेघ समाज की तरफ धिआन नहीं देती तो मेघ समाज को क्या करना चाहिए !इसका सीधा जवाब येही है की मेघ भगत समाज को पंजाब में आपनी शक्ति का पर्दर्शन करना चाहिए और आपने उमीदवार उतरने चाहिए !
SURINDER KUMAR SHINDA ( BHAGAT) (EX. COUNCILLOR)
Monday, December 26, 2011BIO-DATA:
Name SURINDER KUMAR SHINDA
(EX. COUNCILLOR)
AMRITSAR (WEST)
Constituency 016 (Reserved)
Father's Name Sh. Bachan Lal
Date of Birth 15.11.1958
Caste Kabir Panthi (SC)
Qualification Matric
Permanent Address H.No. 2554/13, Gali No.1, Hari Pura,
P.O. Jawala Flour Mills,
Amritsar – 143001. (Pb.)
Contact Nos.: (M) 98553-07474,
(R) 0183-2521690,
(O) 92178-19787
Website www.surindershinda.in
President (Elected) M/s New Bhagat Handloom Weavers
Co-Op. Industrial Society Ltd.
Amritsar
(From 1982 to 2005)
Citizen Club (Regd.) Amritsar
(1995 to 2005)
Director (Elected) District Co-operative Union Ltd.,
Amritsar(From 1988 to 1991)
Director Elected Petrofiels Co-operatives Ltd.
(North Zone), (Govt. of India Undertaking)
Baroda, Gujarat (From 1991 to 1994)
Member Telephone Advisory Committee
(TAC) Amritsar(1992 to 1994)
District Grievances Committee, Amritsar (Co-operative)
Councillor Elected Municipal Corporation Amritsar
(From 1991 to 1996), 1997 to 2002
Chairman Welfare Committee, Municipal Corporation,
Amritsar.(From 1991 to 1996)
President All India Kabir Federation (Regd.)
Amritsar(1997 to till date)
General Secretary District Congress Committee (U)
Amritsar(1992 to 1997)
Block President
District Congress Committee, Block Haripura (2007 – 2010)
Vice President At present District Congress Committee (U) 2011
Place : Amritsar __________________________
Dated
NARINDER SINGH BHAGAT
Sunday, December 25, 2011NARINDER SINGH BHAGAT MEMBER BLOCK SAMITI HAS APPLIED MLA TICKET AS AKALI DAL BADAL PARTY CANDIDATE FROM SRI HARGOBINDPUR RESERVE CONSTITUENCY DISTRICT GURDASPUR.BHAGAT MAHASABHA PUNJAB WILL HELP NARINDER SINGH BHAGAT IF HE IS ABLE TO GET THE TICKET.
NARINDER SINGH BHAGAT .
PROPOSED CANDIDATE
SRI HARGOBINDPUR RESERVE CONSTITUENCY
DISTRICT GURDASPUR
MOBILE NO. 9855834635
NARINDER SINGH BHAGAT .
PROPOSED CANDIDATE
SRI HARGOBINDPUR RESERVE CONSTITUENCY
DISTRICT GURDASPUR
MOBILE NO. 9855834635
इस बार भी मेघ समाज को सभी राजनितिक पार्टिओं ने पार्टी टिकेट्स नहीं दी !
पंजाब में विधान सभा के चुनाव का बिगुल बज चूका है ! इस बार भी मेघ समाज को सभी राजनितिक पार्टिओं ने पार्टी टिकेट्स नहीं दी ! जालंधर वेस्ट विधान सभा क्षेत्र में सिवाए भारतीय जनता पार्टी व बहुजन समाज पार्टी के पुरे पंजाब में किसी और पार्टी ने टिकेट नहीं दिया ! अब सवाल ये उठता है कि मेघों को क्या करना चाहिए ? इस का सीधा सा जवाब ये है कि मेघ समाज को पंजाब में में आपनी शक्ति दिखने के लिए सभी आरक्षित सीटों पर खुद इलेक्शन लर्न चाहिए !महारथी वो होता है जो युद्ध में आपने हित के लिए लड़ता है ! मेघ समाज को आपने अस्तित्व के लिए इस बार ज़रूर कुछ करना चाहिए वर्ना आने वाली मेघ नस्लों को हम क्या जवाब देंगे ! भगत महासभा कि और से पूरा जोर लगाया जा रहा है कि मेघ समाज पंजाब में अजादाना तोर पर सभी रेसेर्वे हलकों पर आपने उमीदवार उतारे !
कहाँ कहाँ पर मेघ उमीदवार विधान सभा चुनाव लड़ सकते हैं ? उम्मीद है कि इस बार मेघ समाज पंजाब में १० हलकों से चुनाव लड़ सकता है !
१ पठानकोट कि तीनों हलकों में मेघ उमीदवार आजाद उमीदवार के तोर पर चुनाव लड़ सकते है !
२ गुरदासपुर के बटाला विधान सभा हलके से मेघ उमीदवार आजाद चुनाव लड़ सकते हैं !
३ अमृतसर के वेस्ट रेसेर्वे हलके से मेघ समाज आजाद चुनाव लड़ सकता है !
४ अबोहर के तीनों विधान सभा हलकों से मेघ समाज इस बार आजाद चुनाव लड़ सकता है
प्रोफ.राज कुमार
नेशनल प्रेसिडेंट
भगत महासभा
Political notes of 80 years old Virumal - 80 वर्षीय वीरूमल जी के राजनीतिक नोट्स
Wednesday, December 21, 2011(यहाँ जो लिखा गया है वह श्री वीरूमल, पीसीएस (सेवानिवृत्त) के मेघ राजनीति के बारे में विचार हैं. श्री वीरूमल आज भी सरकारी कार्यालयों में आरक्षण नीति के विशेषज्ञ माने जाते हैं और इसी क्षेत्र में सक्रिय हैं. ये मेघ समुदाय से हैं लेकिन सरकारी नौकरी के समय से ही इनका दायरा चमार समुदाय में रहा है. उनके ये विचार scribbling के रूप में मिले हैं और उन्हें उसी रूप में लिखा है. आगे उनके विचारों को विस्तार दिया जाएगा. उनकी भाषा का हिंदीकरण किया गया है.)
मेघों, कबीरपंथियों की अपनी कोई पॉवरफुल लॉबी नहीं है, चाहे वे किसी भी धर्म से क्यों न हों. इसका एक ही हल समझ में आता है कि अपने ऑरिजिन को आधार बनाया जाए कि हमारा ऑरिजिन तो एक है. अपने निजी विकास के लिए हम इधर-उधर (धर्मों में) गए हैं. सिखों ने किया, आर्यसमाज ने भी ऐसा किया. उन्होंने अपनी गिनती बढ़ाने के लिए किया. ग़रीब का पेट न भूखा अच्छा न भरा अच्छा. किसी को मानें पर अपने ऑरिजिन को देख कर एक संगठन का हो जाना चाहिए.
हम स्वयं स्वतंत्र रूप से आगे नहीं आ सकते. मायावती ने अन्य समुदायों को साथ लिया है. बीजेपी के साथ मिल कर दो बार कोलिशन सरकार बनाई है. पैसे की कमी थी लेकिन स्वयं सरकार बनाई. जैसे भी आया हो अब उसके पास पैसा भी है. अन्य समुदायों विशेष कर दलितों के साथ मिल कर कार्य करना होगा. कमज़ोर को उठने के लिए किसी का सहारा लेना पड़ता है. इसी प्रकार अपने हित को साधना होगा.
यदि कोई सरकार हड्डी देती है तो आगे बढ़ कर माँस भी पकड़ो. चमार समुदाय से सहयोग लेना होगा और उन्हें सहयोग देना भी होगा. वे अब संगठित हैं.
Meghs and Arya Samaj - मेघ और आर्य समाज
स्यालकोट से विस्थापित हो कर आए मेघवंशी, जो स्वयं को भगत भी कहते हैं, आर्यसमाज द्वारा इनकी शिक्षा के लिए किए गए कार्य से अक़सर बहुत भावुक हो जाते हैं. प्रथमतः मैं उनसे सहमत हूँ. आर्यसमाज ने ही सबसे पहले इनकी शिक्षा का प्रबंध किया था. इससे कई मेघ भगतों को शिक्षित होने और प्रगति करने का मौका मिला. परंतु कुछ और तथ्य भी हैं जिनसे नज़र फेरी नहीं जा सकती.
स्वतंत्रता से पहले स्यालकोट की तत्कालीन राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक परिस्थितियों की कुछ विशेषताएँ थीं जिन्हें जान लेना ज़रूरी है.
तब स्यालकोट के मेघवंशियों (मेघों) को इस्लाम, ईसाई धर्म और सिख पंथ अपनी खींचने में लगे थे. स्यालकोट नगर में रोज़गार के काफी अवसर थे. यहाँ के मेघों को उद्योगों में रोज़गार मिलना शुरू हो गया था और वे आर्थिक रूप से सशक्त हो रहे थे. इनके सामाजिक संगठन तैयार हो रहे थे. उल्लेखनीय है कि ये आर्यसमाज द्वारा आयोजित ‘शुद्धिकरण’ की प्रक्रिया से गुज़रने से पहले मुख्यतः कबीर धर्म के अनुयायी थे. ये सिंधु घाटी सभ्यता के कई अन्य कबीलों की भाँति अपने मृत पूर्वजों की पूजा करते थे जिनसे संबंधित डेरे और डेरियाँ आज भी जम्मू में हैं. शायद कुछ पाकस्तान में भी हों. कपड़ा बुनने का व्यवसाय मेघ ऋषि और कबीर से जुड़ा है और ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में कोली, कोरी, मेघवाल, मेघवार आदि समुदाय भी इसी व्यवसाय से जुड़े हैं.
इन्हीं दिनों लाला गंगाराम ने मेघों के लिए स्यालकोट से दूर एक ‘आर्यनगर’ की परिकल्पना की और एक ऐसे क्षेत्र में इन्हें बसने के लिए प्रेरित किया जहाँ मुसलमानों की संख्या हिंदुओं से अधिक थी. स्यालकोट, गुजरात (पाकिस्तान) और गुरदासपुर में 36000 मेघों का शुद्धिकरण करके उन्हें ‘हिंदू दायरे’ में लाया गया. सुना है कि आर्यनगर के आसपास के क्षेत्र में ‘मेघों’ के ‘आर्य भगत’ बन जाने से वहाँ मुसलमानों की संख्या 51 प्रतिशत से घट कर 49 प्रतिशत रह गई. वह क्षेत्र लगभग जंगल था.
खुली आँखों से देखा जाए तो धर्म के दो रूप हैं. पहला है अच्छे गुणों को धारण करना. इस धर्म को प्रत्येक व्यक्ति घर में बैठ कर किसी सुलझे हुए व्यक्ति के सान्निध्य में धारण कर सकता है. दूसरा, बाहरी और बड़ा मुख्य रूप है धर्म के नाम पर और धर्म के माध्यम से धन बटोर कर राजनीति करना. विषय को इस दृष्टि से और बेहतर तरीके से समझने के लिए कबीर के कार्य को समझना आवश्यक है.
सामाजिक और धार्मिक स्तर पर कबीर और उनके संतमत ने निराकार-भक्ति को एक आंदोलन का रूप दे दिया था जो निरंतर फैल रहा था और साथ ही पुनर्जन्म और कर्म सिद्धांत पर इसने कई प्रश्न लगा दिए थे. इससे ब्राह्मण चिंतित थे क्योंकि पैसा संतमत से संबंधित गुरुओं और धार्मिक स्थलों की ओर जाने लगा. आगे चल कर ब्राह्मणों ने एक ओर कबीर की वाणी में बहुत उलटफेर कर दिया, दूसरी ओर निराकारवादी आर्यसमाजी (वैदिक) विचारधारा का पुनः प्रतिपादन किया ताकि ‘निराकार-भक्ति’ की ओर जाते धन और जन के प्रवाह को रोका जा सके. उन्होंने दासता और अति ग़रीबी की हालत में रखे जा रहे मेघों को कई प्रयोजनों से लक्ष्य करके स्यालकोट में कार्य किया. आर्यसमाज ने शुद्धिकरण जैसी प्रचारात्मक प्रक्रिया अपनाई और अंग्रेज़ों के समक्ष हिंदुओं की बढ़ी हुई संख्या दर्शाने में सफलता पाई. इसका लाभ यह हुआ कि मेघों में आत्मविश्वास जागा और उनकी स्थानीय राजनीति में सक्रियता की इच्छा को बल मिला. हानि यह हुई उनकी इस राजनीतिक इच्छा को तोड़ने के लिए मेघों के मुकाबले आर्य मेघों या आर्य भगतों को अलग और ऊँची पहचान और अलग नाम दे कर उनका एक और विभाजन कर दिया गया जिसे समझने में सदियों से अशिक्षित रखे गए मेघ असफल रहे. इससे सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक बिखराव बढ़ गया.
भारत विभाजन के बाद लगभग सभी मेघ पंजाब (भारत) में आ गए. यहाँ उनकी अपेक्षाएँ आर्यसमाज से बहुत अधिक थीं. लेकिन मेघों के उत्थान के मामले में आर्यसमाज ने धीरे-धीरे अपना हाथ खींच लिया. यहाँ भारत में मेघ भगतों की आवश्यकता हिंदू के रूप में कम और सस्ते मज़दूरों (Cheap labor) के तौर पर अधिक थी. दूसरी ओर भारत विभाजन के बाद भारत में आए मेघों की अपनी कोई राजनीतिक या धार्मिक पहचान नहीं थी. धर्मों या राजनीतिक पार्टियों ने इन्हें जिधर-जिधर समानता का बोर्ड दिखाया ये उधर-उधर जाने को विवश थे. धार्मिक दृष्टि से राधास्वामी मत और सिख धर्म ने भी वही कार्य किया जो ब्रहामणों ने ‘निराकार’ के माध्यम से किया. राधास्वामी मत को कबीर धर्म या संतमत का ही रूप माना जाता है लेकिन यह उत्तर प्रदेश में कायस्थों के हाथों में गया और पंजाब में जाटों के हाथों में. सिखइज़्म और राधास्वामी मत के साहित्य में मानवता और समानता की बात है लेकिन जैसा कि पहले कहा गया है सस्ता श्रम कोई खोना नहीं चाहता. वैसे भी धर्म का काम ग़रीब को ग़रीबी में रहने का तरीका बताना तो हो सकता है लेकिन उसकी उन्नति और विकास का काम धर्म के कार्यक्षेत्र में नहीं आता. यह कार्य राजनीति और सत्ता करती है लेकिन आज तक मेघों की कोई सुनवाई राजनीति में नहीं है और न सत्ता में उनकी कोई भागीदारी है. तथापि मेघों ने एक सकारात्मक कार्य किया कि इन्होंने बड़ी तेज़ी से बुनकरों का पुश्तैनी कार्य छोड़ कर अपनी कुशलता अन्य कार्यों में दिखाई और उसमें सफल हुए.
दूसरी ओर विभिन्न स्तरों पर मेघों के बँटने का सिलसिला रुका नहीं. ये कई धर्मों-संप्रदायों में बँटे. कई कबीर धर्म में लौट आए. कई राधास्वामी मत में चले गए. कुछ गुरु गद्दियों में बँट गए. कुछ ने सिखी और ईसाईयत में हाथ आज़माया. कुछ ने देवी-देवताओं में शरण ली. कुछ आर्यसमाज के हो गए. वैसे कुल मिला कर ये स्वयं को मेघऋषि के वंशज मानते हैं और भावनात्मक रूप से कबीर से जुड़े हैं. मेघवंशियों में गुजरात के मेघवारों ने अपने ‘बारमतिपंथ धर्म’ को सुरक्षित रखा है. राजनीतिक एकता में राजस्थान के मेघवाल आगे हैं. विडंबना ही कही जाएगी कि इन मेघवंशियों की आपस में राजनीतिक पहचान अभी प्रगाढ़ नहीं है. हालाँकि यह चिरप्रतीक्षित है और बहुत ज़रूरी है.
(विशेष टिप्पणी- इस संबंध में विस्तृत जानकारी के लिए आप कपूरथला के डॉ. ध्यान सिंह (जो स्वयं मेघ समुदाय से हैं) का शोधग्रंथ देख सकते हैं.)
Political ambitions of Meghs in forthcoming assembly elections-2012 - मेघों की राजनीतिक महत्वाकांक्षा
Wednesday, December 14, 2011पंजाब में विधान सभा के चुनाव फरवरी 2012 में होने जा रहे हैं. सुना है कि इस बार कम-से-कम 10 मेघ भगत किसी पार्टी की ओर से या स्वतंत्र उम्मीदवार के तौर पर चुनाव में खड़े हो सकते हैं. देखना है कि हमारी तैयारी कितनी है.
शुद्धीकरण की प्रक्रिया से गुजरने के बाद सन् 1910 तक मेघों में जैसे ही अत्मविश्वास जगा तुरत ही उनमें राजनीतिक महत्वाकांक्षा जागृत हो गई. इसे लेकर अन्य समुदाय चौकन्ने हो गए. अपने हाथ में आई सत्ता को कोई किसी दूसरे को थाली में नहीं परोसता कि 'आइये हुजूर मंत्रालय हाज़िर है'. तब से लेकर आज तक वह महत्वाकांक्षा ज्यों की त्यों है लेकिन समुदाय में राजनीतिक एकता का कहीं अता-पता नहीं.
शुद्धीकरण की प्रक्रिया से गुजरने के बाद सन् 1910 तक मेघों में जैसे ही अत्मविश्वास जगा तुरत ही उनमें राजनीतिक महत्वाकांक्षा जागृत हो गई. इसे लेकर अन्य समुदाय चौकन्ने हो गए. अपने हाथ में आई सत्ता को कोई किसी दूसरे को थाली में नहीं परोसता कि 'आइये हुजूर मंत्रालय हाज़िर है'. तब से लेकर आज तक वह महत्वाकांक्षा ज्यों की त्यों है लेकिन समुदाय में राजनीतिक एकता का कहीं अता-पता नहीं.
भारत विभाजन के बाद मेघ भगतों का कांग्रेस की झोली में गिरना स्वाभाविक था. अन्य कोई पार्टी थी ही नहीं. फिर आपातकाल के बाद जनता पार्टी का बोलबाला हुआ. जालन्धर से श्री रोशन लाल को जनता पार्टी का टिकट मिला. पूरे देश में जनता पार्टी को अभूतपूर्व जीत मिली. लेकिन भार्गव नगर से जनता पार्टी हार गई. देसराज की 75 वर्षीय माँ ने हलधर पर मोहर लगाई, विजय के 80 वर्षीय पिता ने हलधर पर ठप्पा लगाया. ये दोनों छोटे दूकानदार थे. लेकिन इस चुनाव क्षेत्र से दर्शन सिंह के.पी. (के.पी.) चुनाव जीत गया.राजनीतिक शिक्षा के अभाव में मेघ भगतों के वोट बँट गए.
फिर भगत चूनी लाल (वर्तमान में पंजाब विधान सभा के डिप्टी स्पीकर) यहाँ से दो बार बीजेपी के टिकट से जीते. लेकिन समुदाय के लोगों को हमेशा शिकायत रही कि इन्होंने बिरादरी के लिए उतना कार्य नहीं किया जितना ये कर सकते थे. कहते हैं कि नेता आसानी सेसमुदाय से ऊपर उठ जाते हैं और फिर 'अपनों' की ओर मुड़ कर नहीं देखते. यहाँ एक विशेष टिप्पणी आवश्यक है कि यदि कोई नेता विधान सभा का सदस्य बन जाता है तो वह किसी समुदाय/बिरादरी विशेष का नहीं रह जाता. वह सारे चुनाव क्षेत्र का होता है. दूसरी वस्तुस्थिति यह है कि हमारे नेताओं की बात संबंधित पार्टी की हाई कमान अधिक सुनती नहीं है. मेघ भगत ज़रा सोचें कि वे कितनी बार अपने नेताओं के साथ सड़कों पर उतरे हैं, कितनी बार उन्होंने अपनी माँगों की लड़ाई लड़ते हुए हाईवे को जाम किया है या अपने नेता के पक्ष में शक्ति प्रदर्शन किया है. इसके उत्तर से ही उनके नेता और उसके समर्थकों की शक्ति का अनुमान लगाया जाएगा.
सी.पी.आई. के टिकट से जीते एक मेघ भगत चौधरी नत्थूराम मलौट से पंजाब विधान सभा में दो बार चुन कर आए. इन्हीं के पिता श्री दाना राम तीन बार सीपीआई की टिकट से जीत कर विधानसभा में आए हैं. पता नहीं उनके बारे में कितने लोग जानते हैं.
सत्ता में भागीदारी का सपना 1910 में हमारे पुरखों ने देखा था. वे मज़बूत थे. इस बीच क्या हमें अधिक मज़बूत नहीं होना चाहिए था? सोचें. 'एकता ही शक्ति है' की समझ जितनी जल्दी आ जाए उतना अच्छा. एकता की कमी और राजनीतिक पिछड़ेपन का हमेशा का साथ है.
राजनीतिक पार्टी कोई भी हो, इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता. सब का चेहरा एक जैसा होता है. महत्वपूर्ण है कि मेघ समाज आपस में जुड़ने की आदत डाले. आपस में जुड़ गए तो स्वतंत्र उम्मीदवार को भी जिता सकते हैं. यही बात है जो बड़ी राजनीतिक पार्टियाँ नहीं चाहतीं.
सी.पी.आई. के टिकट से जीते एक मेघ भगत चौधरी नत्थूराम मलौट से पंजाब विधान सभा में दो बार चुन कर आए. इन्हीं के पिता श्री दाना राम तीन बार सीपीआई की टिकट से जीत कर विधानसभा में आए हैं. पता नहीं उनके बारे में कितने लोग जानते हैं.
सत्ता में भागीदारी का सपना 1910 में हमारे पुरखों ने देखा था. वे मज़बूत थे. इस बीच क्या हमें अधिक मज़बूत नहीं होना चाहिए था? सोचें. 'एकता ही शक्ति है' की समझ जितनी जल्दी आ जाए उतना अच्छा. एकता की कमी और राजनीतिक पिछड़ेपन का हमेशा का साथ है.
राजनीतिक पार्टी कोई भी हो, इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता. सब का चेहरा एक जैसा होता है. महत्वपूर्ण है कि मेघ समाज आपस में जुड़ने की आदत डाले. आपस में जुड़ गए तो स्वतंत्र उम्मीदवार को भी जिता सकते हैं. यही बात है जो बड़ी राजनीतिक पार्टियाँ नहीं चाहतीं.
Megh samaj
Sunday, December 11, 2011मेघ राजनीती को समर्पित ये वेबसाइट मेघ समाज में राजनितिक चेतना पैदा करने की एक ज़रूरी कोशिश है ! इस वेबसाइट में मेघ समाज की राष्ट्रीय राज्ये व् लोकल राजनीती की गतिविदियाँ ही मेघ समाज तक पहुंचाई जाएँगी ! पिछले काफी समय से इस वेबसाइट की ज़रुरत महसूस की जा रही थी ! अक्सर देखा गया है की मेघ समाज के ज़िआदातर राजनितिक लोग वोट तो मेघ समाज का लेते हैं पर काम दुसरे लोगों का और दूसरी राज्नितिक्ल पार्टिओं का करते हैं ! इस लिए ऐसे लोगों की सचाई मेघ समाज के सामने रखने के लिए मेघ समाज में ऐसे लोगों की बरदारी विरोदी गतिविदिओं को सामने लाना ज़रूरी है ताकि ऐसे लोगों को मेघ समाज सबक सिखा सके ! आज हमे मेघ समाज की उन्नति के लिए पढ़े लिखे राजनितिक नेताओं की ज़रुरत है जो मेघ समाज की बेहतरी के लिए कुछ कर सकें !
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